सौरव गांगुली के BCCI अध्यक्ष बनने के मायने, क्या धो पाएंगे भारतीय क्रिकेट का कलंक?
11 जनवरी 1992 को वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने पहले मैच में सौरव गांगुली बुरी तरह फेल रहे। टेस्ट में सफल डेब्यू के बावजूद उन्हें वन-डे टीम से बाहर कर दिया गया। चार साल तक टीम में वापसी के लिए जूझते रहे, लेकिन हार नहीं मानी। आखिरकार दोबारा 1996 में उनकी वापसी हुई। उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि यह पतला-दुबला सा हल्की मूंछों वाला खिलाड़ी न सिर्फ भारत का सबसे कामयाब कप्तान बनेगा बल्कि दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई का मुखिया भी बन जाएगा।  अब सबसे बड़ा सवाल कि जिस विवाद के कारण पूरी बीसीसीआई का सफाया सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद हो गया था क्या सौरव गांगुली उस पर पूर्ण रूप से लगाम लगा पाएंगे। यानि बीसीसीआई के अपने ही टूर्नामेंट आईपीएल में कथित सट्टेबाजी और क्या बीसीसीआई आईसीसी से मिलने वाला अपना हिस्सा बढ़ा पाएगा और लाख टके का सवाल कि भाई-भतीजावाद से भरी पड़ी बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों को कैसे संभालेंगे।

अब सबसे बड़ा सवाल कि जिस विवाद के कारण पूरी बीसीसीआई का सफाया सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद हो गया था क्या सौरव गांगुली उस पर पूर्ण रूप से लगाम लगा पाएंगे। यानि बीसीसीआई के अपने ही टूर्नामेंट आईपीएल में कथित सट्टेबाजी और क्या बीसीसीआई आईसीसी से मिलने वाला अपना हिस्सा बढ़ा पाएगा और लाख टके का सवाल कि भाई-भतीजावाद से भरी पड़ी बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों को कैसे संभालेंगे? 

सौरव के पास सिर्फ 10 माह का समय था। तकनीकी रूप से उसके बाद उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। विशेषज्ञों की माने तो सौरव गांगुली से किसी ने इस पर बात नहीं की, यही वह कारण है जिसके चलते वह आज बीसीसीआई के अध्यक्ष पद तक पहुचेंगे।

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